लोकतंत्र के प्रहरी !

मंजुल भारद्वाज 


युवा हाथों में जलती हुई 


इन मशालों को देख 


तानशाह मग़रूर सत्ताधीश


संविधान में शूल सी गड़ी


तेरी आकंड़ों की सत्ता को 


फूंक देगी 


इन मशाल थामें युवाओं को देख 


बता कौन किस धर्म 


किस जात का है 


किस भाषा और प्रान्त का है


यह सब साझी शहादत 


साझी विरासत के पैरोकार हैं 


अहमक यह तेरी विभाजनकारी


सियासत को जला डालेंगे 


संविधान के संरक्षण में बैठ 


संविधान को लहुलुहान करने वाले कायर 


गौर से देख 


और डर 


यह भेड़ नहीं हैं 


जिन्हें पुलिस के डंडों 


फ़ौज के बूटों से कुचल दोगे


यह तर्क,विचार,सवाल 


बहस,विमर्श,विविधता से लैस 


जान हथेली पर लेकर चलने वाले 


विवेक की मशाल थामें 


देश के मालिक 


लोकतंत्र के प्रहरी हैं!  


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