वक्त से आँख मिचौली!
मंजुल भारद्वाज
अपना वक्त से
आँख मिचौली का
खेल पुराना है
कभी वक्त आगे
तो कभी हम
वक्त एक सीख है
काल की लीक है
कसकर आ घेरता है
गर्दन दबोच
रीढ़ तोड़ता है
सामान्य भाषा में
इसे संकट कहते हैं
दरअसल यह संकट
जीवन,अपनेपन,दोस्ती
दुनिया का मर्म है
जीवन मर्म को साधने का
अवसर है संकट
लीक छोड़ते ही
आ घेरता है
इसे भेदने का
एक सूत्र है
काल जब क्रूर होकर
अपनी गिरफ़्त में ले
तुम कसकर काल को पकड़ लो
तब तक पकड़े रहो
जब तक वो ढीला ना पड जाए
जी हाँ
काल की गिरफ़्त भी छूटती है
यह वही जान पाता है
जो उससे आँख मिलाता है
यह और बात है
वक्त को साधना
किसी किसी को आता है!