मैं हर एक पल हूँ

मैं हर एक पल हूँ


मंजुल भारद्वाज


तुम्हारे होने में
लम्हा लम्हा धड़कता हुआ
तुम्हारे दिल में ...
तुम्हारी सांसो में धधकती आग़
जलती प्राण वायु
मस्तिष्क में कौंधते विचार ,
और रूह की शीतलता में
...मैं हर एक पल हूँ


आने वाले समय के उजालों
बीते समय की परछाइयों
इस समय के सर्जनात्मक स्पन्दन में
...मैं हर एक पल हूँ


हवा के परों पर इबारत लिखते हुए
समन्दर के सैलाब को थामें हुए
संभावनाओं के क्षितिज पर
इन्कलाब लिखते हुए
... ...मैं हर एक पल हूँ


मैं हर एक पल हूँ
लम्हा लम्हा धड़कता हुआ
तुम्हारे दिल में ...!


 


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