वह माँगती भूख को..
सर्दी...
अभिलाषाविनय...
बैठ फुटपाथ पे, ले के कंबल बुझे,
कड़कड़ाती दिखी, आज सर्दी मुझे।१।
भीड़ चारों तरफ, कंबलों की लिये,
ढूँढ़ती घर दिखी, आज सर्दी मुझे।२।
तापती आग को, गुदड़ियों में छिपी,
बिन नहाये दिखी, आज सर्दी मुझे।३।
ले के काली हँसी, हड्डियों में घुसी,
किटकिटाती दिखी, आज सर्दी मुझे।४।
सड़क हँसती रही, चंद सिक्के दिये,
भीख लेती दिखी, आज सर्दी मुझे।५।
सूरजों से भरी, आँख भीगी लिये,
धूप पीती दिखी, आज सर्दी मुझे।६।
हाथ फैले लिये, माँगती भूख को,
वो भिखारिन लगी, आज सर्दी मुझे|७|