सरदार पटेल जैसे साहसी ऐसे वल्र्ड लीडर की आज आवश्यकता

('राष्ट्रीय एकता दिवस' भारत की एकता और अखण्डता के शिल्पकार सरदार वल्लभभाई पटेल जयंती विशेष)


... सरदार पटेल ने 565 रियासतों को मिलाकर अखण्ड भारत का निर्माण किया


... आज सरदार पटेल जैसे साहसी ऐसे वल्र्ड लीडर की आवश्यकता है जो सभी देशों को मिलाकर विश्व संसद तथा विश्व सरकार का गठन कर सकें!


... वसुधैव कुटुम्बकम् अर्थात सारे विश्व को एक कुटुम्ब बनाने का समय आ गया है!


भारत की एकता और अखण्डता के शिल्पकार सरदार वल्लभभाई पटेल जयंती 'राष्ट्रीय एकता दिवस' के रूप में देश भर में 31 अक्टूबर को मनायी जा रही है। अक्टूबर, 2014 में भारत सरकार ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सरदार वल्लभभाई पटेल के जन्म दिवस को प्रत्येक वर्ष 'राष्ट्रीय एकता दिवस' के रूप में मनाने की घोषणा की थी। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद इस बार सारा देश सरदार वल्लभभाई पटेल की 144वीं जयंती गुरुवार, 31 अक्टूबर 2019 को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में धूमधाम से मना रहा है। उत्तर प्रदेश की सरकार हर थाने मंे देश के पहले गृह मंत्री सरदार पटेल के चित्र लगाने का निर्णय किया है।



सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, 1875 में नाडियाड, गुजरात में हुआ था। सरदार बल्लभ भाई पटेल मन और प्रकृति से किसान थे। वल्लभभाई ने बहुत अच्छे अंकों से कानून की परीक्षा पास कर ली और प्रैक्टिस गोधरा कोर्ट में शुरू की। जल्दी ही उनकी वकालत फलने-फूलने लगी। उनका विवाह झाबेराबा से हुआ। उनके यहां एक बेटी मनीबेन और पुत्र दाहयाभाई का जन्म हुआ। पटेल की पत्नी की मृत्यु जल्दी हो गई, तब उनकी उम्र केवल तैंतीस साल की थी।


देश के लिए पूरी समर्पित वल्लभ भाई ने दोबारा शादी नहीं करने का निश्चय किया। वह उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड जाकर बहुत लगन के साथ बैरिस्टर-एट-लाॅ की पढ़ाई की और परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करके देश का गौरव बढ़ाया। सरदार पटेल चंपारण सत्याग्रह में गांधीजी की सफलता से बहुत प्रभावित हुए थे। 1918 में गुजरात के खेड़ा में सूखा पड़ गया। सूखा से पीड़ित किसानों ने सरकारी टेक्स की उच्च दरों से रियायत मांगी, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने इंकार कर दिया। गांधीजी ने किसानों की समस्याओं को व्यापक रूप से उठाया, लेकिन वह खेड़ा में अपना पूरा समय नहीं दे पा रहे थे। वह किसी ऐसे पात्र व्यक्ति की तलाश कर रहे थे, जो खेड़ा में आंदोलन का नेतृत्व कर सके। सरदार पटेल इस संकट की घड़ी में साहस के साथ आगे आए और पूरे मनोयोग से आंदोलन का नेतृत्व किया। इसके लिए उन्होंने अपनी अत्यधिक लाभकारी वकालत की प्रैक्टिस छोड़ दी और उस समय पुकार सुनते हुए सब कुछ त्यागकर सार्वजनिक जीवन में प्रवेश किया।


वल्लभभाई ने सफलतापूर्वक खेड़ा में किसानों के विद्रोह का नेतृत्व किया। यह विद्रोह 1919 में खत्म हुआ, जब ब्रिटिश सरकार कर वसूलने का आदेश रद्द करने और टेक्स की बढ़ी दरें वापस लेने को तैयार हो गई। खेड़ा सत्याग्रह ने सरदार पटेल को राष्ट्रीय नायक बना दिया। उन्होंने गांधीजी के असहयोग आंदोलन का समर्थन किया और गुजरात कांग्रेस का सहायता की। 1922, 1924 और 1927 में सरदार पटेल अहमदाबाद नगर निगम के अध्यक्ष चुने गए।
दुर्भाग्य से वर्ष 1928 में गुजरात बारडोली तालुका बाढ़ और अकाल की चपेट में आ गया। इस कठिन समय में कठोर ब्रिटिश सरकार ने पीड़ित किसानों पर कर की दरें सख्ती के साथ तीस प्रतिशत तक बढ़ा दीं। सरदार पटेल ने किसानों की ओर से जमकर मोर्चा संभाला। उन्होंने पूरे उत्साह के साथ किसानों को संगठित किया और उनसे कहा कि वह टेक्स की एक कौड़ी भी न दें। सरकार ने आंदोलन को दबाने का प्रयास किया, लेकिन अंततः पटेल के सामने झुक गई। बारडोली सत्याग्रह का नेतृत्व कर रहे पटेल को सत्याग्रह की सफलता पर वहाँ की महिलाओं ने सरदार की उपाधि प्रदान की थी। सरदार वल्लभ भाई पटेल भारत के एक समर्पित, साहसी तथा सच्चे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे।
वह अपनी लोकप्रियता के आधार पर कांग्रेस के 1931 में कराची में होने वाले अधिवेशन के लिए अध्यक्ष चुने गए। लंदन में गोलमेज सम्मेलन की असफलता के बाद 1932 में गांधी और पटेल को गिरफ्तार किया गया और यरवदा की केंद्रीय जेल में बंद कर दिया गया। इस कारावास के दौरान सरदार पटेल और महात्मा गांधी एक-दूसरे के करीब आ गए। जुलाई, 1934 को सरदार पटेल को छोड़ दिया गया। अगस्त, 1942 में कांग्रेस ने भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया। सरकार ने कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया, जिनमें सरदार पटेल भी थे। सभी नेताओं को तीन साल बाद छोड़ा गया।
15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री बने और सरदार पटेल उप-प्रधानमंत्री। वह गृह मामलों, सूचना और प्रसारण और राज्यों के मंत्रालय के भी प्रभारी थे। सरदार पटेल भारत पाकिस्तान के बंटवारे के दौरान शरणार्थियों के लिए ईश्वर तुल्य साबित हुए। उन्हें स्वतंत्र भारतीय संघ में 565 रियासतों के राजनीतिक एकीकरण के लिए जाना जाता है। उन्होंने 565 रियासतों को भारत का हिस्सा बनने के लिए एकजुट किया। उन्होंने अत्यंत बुद्धिमानी और राजनीतिक दूरदर्शिता के साथ 565 रियासतों को भारत में मिलाया। उन्होंने हैदराबाद के निजाम और जूनागढ़ के नवाब के विवादास्पद मामलों को बड़ी सूझबूझ से निबटाया, जो शुरू में भारत में शामिल नहीं होना चाहते थे। देश की एकता के लिए किए जा रहे सरदार पटेल के अथक कार्यों को सफलता मिली। देश की एकता तथा अखण्डता के लिए हर पल जीने वाले इस महापुरूष की 15 दिसंबर, 1950 को देहान्त हो गया। देश के प्रति उनके सर्वाधिक योगदान के लिए 1991 में सरदार वल्लभभाई पटेल को मरणोपरांत देश के सबसे बड़े नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया
गया।
भारत की गणना विश्व के सबसे बडे़ देशों में से एक के रुप में की जाती है जो कि पूरे विश्व में दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है, जहाँ 1652 के आसपास भाषायें और बोलियाँ बोली जाती हैं। यह देश दुनिया के सभी प्रमुख धर्मों को जैसे हिंदू, बौद्ध, ईसाई, जैन, इस्लाम, सिख और पारसी धर्मों को विभिन्न संस्कृति, खानपान की आदतों, परंपराओं, पोशाकों और सामाजिक रीति-रिवाजों के साथ शामिल करता है। यह जलवायु में काफी अन्तर के साथ एक विविधतापूर्ण देश है। देश में प्रमुख भिन्नता होने के बाद भी, इसका प्रत्येक भाग एक ही संविधान द्वारा बहुत शांति के साथ नियंत्रित हंै।
भारत सरकार सरदार वल्लभभाई पटेल के नाम पर भारत की एकता और अखंडता के क्षेत्र में योगदान के लिए राष्ट्रीय एकता पुरस्कार देती है। इस पुरस्कार की घोषणा 31 अक्टूबर को सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती के मौके पर की जाती है। राष्ट्रीय एकता पुरस्कार का उद्देश्य राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बढ़ावा देने और एक मजबूत और अखंड भारत के मूल्य को सुदृढ़ करने में उल्लेखनीय और प्रेरक योगदान के लिए सम्मानित करना है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के केवाडिया में इस पुरस्कार को देने वाले संस्थान की घोषणा की थी।
सरकार वल्लभभाई पटेल की दुनिया की सबसे ऊंची 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' प्रतिमा के निर्माण के लिए पूरे देश में लगभग सात लाख गांवों से लोहा एकत्र किया गया था। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के नर्मदा जिले के केवडिया में दुनिया की सबसे ऊंची 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' राष्ट्र को समर्पित की थी। प्रधानमंत्री जी लौह पुरूष सरकार वल्लभभाई पटेल को 31 अक्टूबर 2019 को उनकी जयंती पर केवड़िया जाकर समूचे देश की ओर से श्रद्धाजंलि अर्पित की। इस जयंती समारोह में 700 जिलों के लाखों ने भाग लिया। इस अवसर पर देश भर में लोगों ने रन फाॅर यूनिटी में हिस्सा लिया।
विश्व परिवर्तन मिशन के संस्थापक युवा विश्वात्मा भरत गांधी का कहना है कि सरदार पटेल ने 565 रियासतों को मिलाकर अखण्ड भारत का निर्माण किया था, आज सरदार पटेल जैसे साहसी ऐसे वल्र्ड लीडर की आवश्यकता है जो सभी देशों को मिलाकर विश्व संसद तथा विश्व सरकार का गठन कर सकें! वसुधैव कुटुम्बकम् अर्थात सारे विश्व को एक कुटुम्ब बनाने का समय आ गया है!
विश्वात्मा भरत गांधी का कहना है कि सारी दुनिया शक्तिशाली देशों की परमाणु शस्त्रों की होड़, तीसरे विश्व युद्ध की आये दिन होने वाली आशंका तथा अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद से उब गयी है। वर्तमान में विश्व भर में वल्र्ड जुडीशियरी तथा वल्र्ड मीडिया द्वारा विश्व नागरिकों द्वारा चुनी हुई विश्व संसद की मांग उठ रही है। भारत को यूरोपियन यूनियन से सबक लेकर पहले चरण में दक्षिण एशियाई सरकार बनानी चाहिए। दूसरे चरण में दक्षिण-उत्तर एशियाई सरकार तथा तीसरे चरण में विश्व की सरकार बनाने के पहल शीघ्र करना चाहिए। इसके साथ ही जय जगत तथा वसुधैव कुटुम्बकम् की अवधारणा साकार होगी। सबसे बड़े तथा युवा लोकतांत्रिक देश भारत के लिए यह कोई कठिन कार्य नहीं है।
आज राह भटकी मानव जाति बड़ी ही विश्वास के साथ भारत की ओर देख रही है। जगत गुरू के अपने गौरवपूर्ण अतीत को पुनः साबित करने का अवसर भारत के पास है। जगत गुरू के रूप में हमें विश्व संसद का गठन समय रहते करना चाहिए। गरीबी, बेरोजगारी, आर्थिक मंदी, शरणार्थी समस्या, भूख, महामारी, जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग, आतंकवाद, परमाणु शस्त्रों की होड़ जैसी विश्वव्यापी समस्याआंे का राष्ट्रीय स्तर पर नहीं निकाला जा सकता। इसके समाधान के लिए एक न्यायपूर्ण वैश्विक व्यवस्था का गठन इस युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
अति आधुनिक मशीनी युग में हर कार्य मशीनों तथा कम्प्यूटर से हो रहे हैं। अब हर हाथ को काम देना कठिन हो गया है। देश की सरकार को प्रत्येक वोटर को वोटरशिप अधिकार कानून बनाकर उसके हिस्से की आधी धनराशि जो छः हजार रूपये होती है उसके खाते में प्रतिमाह डालनी चाहिए। दूसरे चरण में दक्षिण एशियाई सरकार के गठन करके पड़ोसी देशों से सुरक्षा व्यय से बची धनराशि को वोटरशिप की धनराशि को प्रत्येक वोटर बढ़ाकर पन्द्रह हजार रूपये प्रतिमाह देना चाहिए। दूसरे चरण तथा तीसरे चरण में विश्व सरकार के गठन के बाद विश्व के प्रत्येक वोटर को चालीस हजार रूपये वोटरशिप के रूप में प्रतिमाह देना सम्भव हो जायेगा। ऐसा करके ही राजनीतिक आजादी के साथ आर्थिक आजादी आनंद प्रत्येक वोटर को तथा प्रत्येक परिवार को दे सकेगा। इसके अलावा देश तथा विश्व की अनेक प्रकार की समस्याओं को कोई स्थायी समाधान नहीं हैं। देश तथा विश्व
का असली मालिक वोटर को उसका हक संवैधानिक तथा न्यायपूर्ण ढंग से मिलना ही चाहिए। - प्रदीप कुमार सिंह


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