स्वार्थ में अपने...

...वो साथी बन जाते
पग-पग कर अपमान अपनो का,
कैसे-जीवन में- वो साथी बन जाते।
साथी साथी कह कर भी, साथी उनको- भूल जाते।
मैं-ही-मैं बसता जो, तन- मन में साथी- कैसे-संग निभाते?
भूल कर संबंधो को वो तो, स्वार्थ में अपने- संबंध नये बनाते।
सत्य नहीं जीवन में उनके, फिर भी साथी- सत्यवादी कहलाते।
पग-पग कर अपमान अपनो का, कैसे-जीवन में- वो साथी बन जाते...|


इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

..आपने मुन्ना को देखा है?

यूपी सरकार में दवा व्यवसाई भी सुरक्षित नहीं?

हलिया व लालगंज में गरीब, असहाय जरूरतमन्दों को किया गया निशुल्क कम्बल का वितरण