दुविधा में मन जीवन में साथी....
''आशा'' सुनील कुमार गुप्ता "जीवन की स्वप्न कलियों के, खिलने की आशा में- जी रहा हूँ। निराशा की गहराती बदली का , दर्द जीवन में- सह रहा हूँ। दुविधा में मन जीवन में साथी, किसको-अपना- कह रहा हूँ? धूमिल होती आशाओ को साथी, जीवन में फिर- ढूँढ रहा हूँ। उजालो में भटका तन-मन साथी, अंधेरो में- खो रहा हूँ। सुनहरे सपनो की आशा में ही, भोर मे भी- सो रहा हूँ। जीवन की स्वप्न कलियो के, खिलने की आशा में- जी रहा हू्ँ।।