तू ने कृपा ना की नटवर तो

प्रेमचंद्र सैनी...


मै इन गीतों में भावों को मुखरित कैसे कर पाऊंगा,


तूने कृपा ना की नटवर तो तम को कैसे हर पाऊंगा|


 


रंग तूलिका चित्र बनाना,दीर्घ काल से कलम चलाना,


लेकिन मेरे किसी छंद ने,तेरा सच्चा रूप न जाना|


बालकपन में अटपट गाया,यौवन मस्ती में इठलाया,


तरह तरह से चित्र बनाये,फिर भी बीच भंवर भरमाया|


 


यह तो तेरे ऊपर निर्भर आगे क्या मैं कहलाऊंगा|


मैं इन गीतों में भावो को,मुखरित कैसे कर पाऊंगा|


 


इस महफिल में नहीं अकेला,लाखों कवियों का जमघट है,


मैं किंचित सम्मान ना पाऊं,भोले क्यों तेरा यह हठ है|


गीत लिखूं चाहे कुरीति का,कर्म धर्म अथवा अनीति का,


जन-जन आराधना करता है ताल छंद स्वर लय संगीत का|


 


तेरी गाथा निज वीणा में,झंकृत कैसे कर पाऊंगा|


मैं इन गीतों के भावों में,मुखरित कैसे कर पाऊंगा|


 


फिर मुझसे ही क्यों तू कहता,गा-गा कर  रात गुजारूं,


पकड़ पकड़ यह कलम तूलिका,इन परअपना सब कुछ वारुंं|


निकट समापनअब महफिल का,अब तो पौ फटने काक्षड़ है, 


तेरी कृपा बिना पाये मैं,नहीं हटूंगा मेरा प्रण है|


 


हे गंगाधर गंग बिना कब,काव्य-सुधा में सरसाऊंगा|


मैं इन गीतों को भावों में मुखरित कैसे कर पाऊंगा|


 


 


 


 


 


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