तंग हाल पर रोना नहीं अच्छा

सुरेंद्र सैनी...


रोना नहीं अच्छा...


हद से ज्यादा ख्वाब संजोना नहीं अच्छा 


हो के बेपरवाह सोना नहीं अच्छा 


अपने तंग हाल पर रोना नहीं अच्छा 


 


कोई मिल गया साथी तो कद्र कर 


पा कर नायाब हीरा खोना नहीं अच्छा 


 


तुम हो तो घर में हर वक्त रौनक


बिना तेरे घर का कोई कोना नहीं अच्छा


 


तेरे साथ गुजरे लम्हों की महक है


तेरे बदन से सटी चादर को धोना नहीं अच्छा


 


लिखता है तू कौन परवाह करे "उड़ता"


तेरी नजरों में अश्रु पिरोना नहीं अच्छा 


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