मुक्त कश्मीर हो
विप्लव...
काश्मीर घाटी की,खिली केसर कली,
स्वर्ग की अप्सरा जो धरा पर चली|
नूपुर उसके बजे,शिखरों के मंच पर,
झूमते चिनार वन,भूमि के अंक पर|
देवताओं से सजे,हिम ढके पेड़ ये,
सूर्य की रश्मियां,ढांकती कुमकुमेे|
जल उठे ज्यों वहां,आरती के दिए,
देश के भाल पर जगमगा से उठे|
मोहनी रूपसी,बांटती अमृत ही,
काश्मीर घाटि की झूमती सी बदली|
फिजां क्यों बदली,भावना उठी पगली?
हंसी काश्मीर की,क्यों हुई धुँधली?
बारूद की गंध,हवाओं में घुली,
परतंत्रता घिरी,देह इसकी छिली|
घर आंगन छोड़ा,मजबूर सा हुआ,
घाटी में परिवार कई बेघर हुआ|
आतंक हर समय,शान्त शिकारों तक|
दरिंदे घूमते,इन पहाड़ों तक|
तत्व वे अराजक,कली-पुष्प बींघते,
कश्मीर कमनीयता,बर्बर हो रौंदते|
स्वर्ग सी भूमि ये,मुक्त कश्मीर हो,
भारतीय भाल ये,मुक्त जंजीर हो|
तिलक केसरी ही,राष्ट्र के माथ पर,
मान काश्मीर है,राष्ट्र के गात पर|
राष्ट्र ध्वज का यही,केसरी रंग है,
"काश्मीर भारत का,अविभाजितअंग है|"
डल झील से झांकता,जागते सपनों सा,
मृद्र सुगन्धो सा,अंचल ये अपनों का|
राष्ट्र अधूरा सा है,पूरे काश्मीर बिना,
खालीपन ये भरेगा,मुक्त कश्मीर होगा|