मुझे गुनाहगार कर
सुरेंद्र सैनी
नसीब सी कश्ती चमकदार कर
इस पार या उस पार कर
अफवाह उड़ी मेरी तबीयत खराब की
या खुदा मुझे उनका बिमार कर
रात को चांद के भरोसे ना छोड़
जाकर जुगनुओ को खबरदार कर
जाने क्या रुक-रुक देखते हैं लोग
मुझको भी खबरों सा अखबार कर
कहीं अपने बीच दीवार खड़ी है
खोल रोशनदान जरा हवादार कर
पी लूंगा जहर तेरे हाथ से
बस जरा तू मुझे गुनाहगार कर
अपने हिस्से की जिंदगी ढूंढता
दे के जमीन मुझे जमीदार कर
तेरे लिए जीता रहा आज तलक
'उड़ता'मेरी चाहत का ऐतबार कर