हमेशा ही कल को मैं सोच रहा हूं

मेवा लाल यादव (पूर्व सैनिक)


छुआ छूत उड़ गई बन के धुआंं


जात-पात का भी है गहरा कुआं 


ये भी पट जाये,उस पल को मैं सोच रहा हूं 


 


टूटे ना मस्जिद बन जाये मंदिर 


जटिल समस्या के हल कों में सोच रहा हूं 


वर्षों से नेता बंधा खूटे में 


 


हर रोज दल बदल को मैं सोच रहा हूं 


किसी को हाथ दिया किसी को हाथी 


किसी को साइकिल को मैं सोच रहा हूं 


 


जो सवाल आए जवाब कॉपी में छप जाए 


अब्बल दर्जे की नकल को मैं सोच रहा हूं 


पड़ रही डकैतीयां लुटे थाने चौकियांं


 


पुलिस के दल दल को मैं सोच रहा हूं  


विदेशी कपड़े की भरमार भारत में 


स्वदेशी मलमल-मखमल को मैं सोच रहा हूं 


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