दौलत ही ईमान हो गई

गिरीश कुमार मिश्रा..


 जुर्मो-जफ़ा धनवान हो गयी |


दौलत  ही ईमान  हो  गयी |


 


नेक आबरू नेकनियत थी,


माँगा बस बेईमान हो गयी |


 


पढ़ी  इबादत मन्नत मांगी,


मस्जिद नहीं दुकान हो गयी |


 


इंसान की रूह जमी को-


छूते ही शैतान हो गयी |


 


आँखों में तस्वीर जीस्त की,


दिल में एक तूफान हो गयी |


 


आज जिंदगी इतनी बोझिल-


ढोने का सामान हो गयी |


 


ख़त्म कहानी जनमें पनपे


व्याह  हुआ संतान हो गई |


 


आया वक्त गया हाथो से,


हर आहट सुनसान हो गयी |


 


वक्त जरूरत  पर  ज्यादातर,


जानी  शह  अनजान हो गई |


 


 


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