दौड़ना मेरी तकदीर है

सुरेंद्र सैनी...


नहीं कोई स्यायी..


नहीं बनी है ऐसी कोई स्याही 


जो लिखा मिटा दे ईलाही 


 


नहीं बदलनी पड़े सोच अपनी 


ना देनी पड़े कर्म-ए-सफाई 


 


अन्दर दबी आवाजों में ही 


निकलती है कहीं कोई सदाई


 


कसक तोड़ रही पल पल 


हालात हो रहे क्यों हरजाई 


 


दौड़ना मेरी तकदीर है 'उड़ता'


हौसलो से होगी भरपाई 


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