माँ तुम्हें प्रणाम...
पुणे निवासी 'फुले ज्योतिबा, जन सेवी शुचि नाम है|
घर-घर में शिक्षा फैलाई, मेरा तुम्हें प्रणाम है|
निर्बल का उद्धार किया था,
पुरोंहितों की मनमानी थी|
पथ में बिछे हुए शूलो को,
सदा हटाने की ठानी थी|
धर्म जाति के दुष्प्रभाव से,
तुम हरजन के रखवाले थे
दलितों के प्राणों तुम ही,
नवल स्फुरित भरने वाले थे|
पत्नी 'सावित्री' ने भी तो किया कीर्तिमय काम है|
घर-घर में शिक्षा फैलाई मेरा तुम्हें प्रणाम है|
अगणित शिक्षा मंदिर खोलें,
साक्षरता के मतवाले थे|
संप्रदाय के विष से पीड़ित,
जन-जन के तुम रखवाले थे|
भेद-भाव दीवार मिटाकर,
अद्भूत साहस दिखलाया था|
जीर्ण रूढ़ियां तुमने कुचली,
मानव का हृदय खिलाया था|
संघर्षों का बिगुल बजाया धर्म-कर्म अभिराम है|
घर-घर में शिक्षा फैलाई मेरा तुम्हें प्रणाम है|
साक्षरता का लक्ष्य भेदकर,
घर-घर में मुस्कान जगायी|
ओ उपवन के माली! तुमने,
जीवन-पद्धति थी सिखलाई|
सत् कर्मों के दीप जलाकर,
हम सब श्रद्धा अर्पित करते|
भाव भरा अनुराग जगाकर,
तुमको सुमन समर्पित करते|
चलते हुए कुरीति चक्र पर चहूंदिशि लगा विराम है|
घर -घर में शिक्षा फैलाई ,मेरा तुम्हें प्रणाम है|