कुछ उम्मीदें आज भी हैं सरकार से....
निजीकरण की व्यवस्था ठीक नहीं...?
साकेत मौर्य
निजीकरण व्यवस्था भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश की जनता के लिए कदापि उचित नहीं है बल्कि यह समाज में देश में एक ऐसी खाई को जन्म देगी जिसकी भरपाई असंभव है|
कल्पना करिए भारत के प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक का निजीकरण समस्त चिकित्सा सुविधाओं का प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर पीजीआई एम्स मेडिकल कॉलेज इनका निजीकरण भारतीय रेलो का प्राइवेटाइजेशन भारतीय संचार निगम रोड ट्रांसपोर्ट भारत की तेल कंपनियां सभी कुछ प्राइवेट यह उचित है क्या यह देश की कम कमाई वाली जनता के हित में रहेगा क्या देश की गरीब जनता प्राइवेट हाथों में महंगी पढ़ाई महंगी चिकित्सा सुविधा रेल, यातायात को सहन कर सकती है,जिसकी आय बहुत कम है|
आखिर सरकार का काम निजीकरण ही क्यों हैं...
कर्मियों के बावजूद सरकार द्वारा प्रदत सुविधाएं आम जनता के हित को कुछ हद तक सुरक्षित रखती है| वैचारिक राजनीति से अलग व्यवहारिक लाभ वाली राजनीति के सिद्धांत पर चलकर सरकारें जनता का कोई भला नहीं कर सकती हैं|अगर ऐसा सब कुछ चलता रहा तो एक दिन देश कुछ पूंजीपतियों के हाथ में खिलौना सा दिखाई देगा,और देश की जनता पूंजीपतियों की गुलाम होगी|निजीकरण एक व्यवस्था नहीं बल्कि नव रियासतीकरण है| अगर हर काम में लाभ की ही सियासत होगी तो आम जनता का क्या होगा|कुछ दिन बाद नव रियासतीकरण वाले लोग कहेंगे कि देश के सरकारी स्कूलों कॉलेजो अस्पतालों से कोई लाभ नहीं है अतःइनको भी निजी हाथों में दे दिया जाय तो जनता का क्या होगा|अगर देश की आम जनता प्राइवेट स्कूललो और हॉस्पिटलों को लूटतंत्र से संतुष्ट है तो रेलवे और संचार, यातायात को भी निजी हाथों में जाने का स्वागत करें| आखिर सरकार का काम निजीकरण ही क्यों हैं? हमने बेहतर व्यवस्था बनाने के लिए सरकार बनाई है ना कि सरकारी संपत्ति मुनाफाखोरी को बेचने के लिए|सरकार अपनी जवाबदेही से बचने के लिए घाटे का बहाना बनाकर इन्हें क्यों बेच रही है?
अगर प्रबंधन सही नहीं तो सही करें| उनसे जवाब ले अगर संतोषजनक जवाब ना हो तो उस पर एक्शन ले भागने से तो काम नहीं चलेगा|सरकार लाभ कमाने वाली नवरत्न कंपनियों को बख्श दे|
पूंजीपति देता है और पूंजीपति दान नहीं देता, निवेश करता है...
चुनाव बाद मुनाफे की फसल काटता है...
आइए निजीकरण का विरोध करें...
सरकार को अहसास कराएं कि अपनी जिम्मेदारियों से भागे नहीं ...
और सरकारी संपत्तियों को बेचे नहीं...
साजिश है कि पहले सरकारी संस्थानों को ठीक से काम ना करने दो,फिर बदनाम करो,जिससे निजीकरण का रास्ता साफ हो और कोई बोले भी नहीं,एक प्रश्नःआखिर यही कंपनियां निजीकरण करने के बाद मुनाफा कैसे कमाती हैं,जो सरकारी होते हुए क्यों नहीं? याद रखिए पार्टी फंड में गरीब मजदूर किसान पैसा नहीं देता| पूंजीपति देता है और पूंजीपति दान नहीं देता,निवेश करता है| चुनाव बाद मुनाफे की फसल काटता है आइए निजीकरण का विरोध करें| सरकार को अहसास कराएं कि अपनी जिम्मेदारियों से भागे नहीं सरकारी संपत्तियों को बेचे नहीं|
अगर कहीं घाटा है तो प्रबंधन ठीक से करें वैसे भी सरकार का काम सामाजिक व्यवस्था का होता है, मुनाफाखोरी पैसा कमाना नहीं यही सत्य है कि देश की बुनियादी ढांचे को सोच समझ कर उसमें सुधार लाने की जरूरत है ना कि उसे किसी और को सौंप देने कि देश में सत्तानसीन राष्ट्रवादी सरकार से कुछ उम्मीदें अभी भी जरूर बनी हुई है|