काश एक नजर देख लेता

सुरेंद्र सैनी..


इश्क की धूप में आंखें सेक लेता 


हुस्न का बाजार एक नजर देख लेता 


 


है हवा में महक उसके तन की 


जरा तबीयत से उधर देख लेता 


 


ना होती शिकन उनसे दूर जाने की 


जो जी भर अगर देख लेता 


 


दिल खुशी से बेजार हो जाता 


हल्के से उनका लब-ए-अघर देख लेता 


 


यूं ना भटकता गली-गली "उड़ता" 


जो एक बार जाकर उनका घर देख लेता 


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