दीपक जले कतारों में
प्रेमचंद सैनी...
दीपक जले कतारों में,
झिल-मिल छटा सितारों में|
मानव तू उनकी जय बोल,
ज्योति पर्व भावों को तोल|
नव पीढ़ी के दीप हपारे,
टिम-टिम करते बने सहारे|
दीप पुरातन बुझने पर भी,
दिव्य प्रभा का रहता मोल|
ज्योति-पर्व भावों का तोल|
दिशा-दिशा में किरणे फैली,
किन्तु रोशनी क्यों मटमैली|
लिए स्नेह निष्ठा की बाती,
तम में नवल रश्मिया घोल|
ज्योति-पर्व भावों को तोल|
त्याग भला अब किसको प्यारा,
मानव आज स्वार्थ का मारा|
अब अपने सपनों की खातिर,
नहीं लक्ष्य से.तू हिल डोल|
ज्योति-पर्व भावों को तोल|