मनुष्य एक भौतिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक प्राणी है!
बालक को ईश्वर का उपहार एवं मानवजाति का गौरव बनायें :- यदि आधुनिक विद्यालयों ने बालक को केवल विषयों का भौतिक ज्ञान दिया जाये और उसके सामाजिक एवं आध्यात्मिक गुणों को बढ़ाने वाली शिक्षा में कमी कर दी जायें तो उससे बालक असंतुलित व्यक्ति के रूप में विकसित हो जायेगा। वास्तव में इस प्रकार की एकांकी शिक्षा में पला-बढ़़ा बालक अपने परिवार एवं समाज को अच्छा बनाने के बजाये उसे और भी अधिक असुरक्षित एवं असभ्य बनाने का कारण बन जाता है। अतः प्राचीन काल के शिक्षालयों से प्रेरणा लेकर आज के आधुनिक विद्यालयों को भी प्रत्येक बच्चे को बाल्यावस्था से ही सर्वश्रेष्ठ भौतिक शिक्षा के साथ ही साथ उसे सामाजिक तथा आध्यात्मिक अर्थात् संतुलित शिक्षा देकर उसे ईश्वर का उपहार एवं मानवजाति का गौरव बनाना चाहिए।
प्रारम्भ के शिक्षालयों की चिन्ता होती थी कि अच्छे इंसान कैसे बने? :- वर्ष 1850 से वर्ष 1950 तक लगभग 100 वर्षो के बीच सारे विश्व में औद्योगिक क्रान्ति हुई। विश्व के सभी देशों के बीच अपना-अपना सामान अधिक से अधिक बेचकर लाभ कमाने की अत्यधिक होड़ बढ़ने लगी। उस दौड़ में शिक्षा एवं शिक्षालय केवल कमाई के योग्य व्यक्ति बनाने के टकसाल बन गये। इसके पूर्व शिक्षालयों की चिन्ता होती थी कि बच्चे कैसे अच्छे इंसान बने? नालन्दा, तक्षशिला, शान्ति निकेतन, गुरूकुलों आदि में भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक तीनों तरह की संतुलित शिक्षा पर अत्यधिक ध्यान दिया जाता था।
बालक को परिवार तथा समाज के प्रति उत्तरदायी नागरिक बनाना :- अब विद्यालय की चिन्ता यह है कि बोर्ड परीक्षाओं के परीक्षाफल कैसे अच्छे बने? विद्यालयों के बीच अपने-अपने रिजल्ट को दिखाकर अधिक से अधिक बच्चों के दाखिले की होड़ लगी है। स्कूलों तथा कालेजों से सामाजिक तथा आध्यात्मिक शिक्षा विलुप्त होती चली गयी। वर्तमान समय में अच्छे रिजल्ट बनाने की होड़ को कम नहीं किया जा सकता। इस हेतु बालक को अपने सभी विषयों का संसार का सबसे उत्कृष्ट भौतिक ज्ञान मिलना चाहिए। किन्तु इसके साथ ही साथ समाज के प्रति संवेदनशीलता तथा उसके हृदय में परमात्मा के प्रति अटूट प्रेम भी उत्पन्न करना होगा तभी हम प्रत्येक बालक को समाज के प्रति उत्तरदायी नागरिक बना पायेंगे।
शिक्षा के द्वारा तीन क्षेत्रों को तराशना होगा :- यदि धरती पर शैतानी सभ्यता की जगह आध्यात्मिक सभ्यता स्थापित करनी है तो इसके लिए हमें शिक्षा के द्वारा तीन क्षेत्रों को तराशना होगा। पहला क्षेत्र इस युग के अनुरूप ‘शिक्षा’ होनी चाहिए (अर्थात शिक्षा केवल भौतिक नहीं वरन् भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक तीनों की संतुलित शिक्षा), दूसरा क्षेत्र - धर्म के मायने प्रेम और एकता है। परमात्मा ने धरती के प्रथम स्त्री-पुरूष ऐडम एवं ईव या मनु एवं सतरूपा को प्रेम तथा एकता से रहने की सीख दी थी। इसलिए यह अनादि, अपरिवर्तनीय तथा शाश्वत धर्म है। मनुष्य का एक ही कर्तव्य है - सारी मानव जाति में प्रेम तथा एकता स्थापित करना।
आधुनिक विद्यालयों को बच्चों को स्वतः कानून का पालक बनने की शिक्षा देनी चाहिए :- तीसरा क्षेत्र है न्याय एवं कानून का क्षेत्र। आज सारे विश्व में कानूनविहीनता बढ़ रही है। इसलिए बच्चों को बचपन से कानून पालक तथा न्यायप्रिय बनने की सीख देनी चाहिए। आज हम सब संसारवासी कानून को तोड़ने वाले बनते जा रहे हैं। इसलिए अगर हमें समाज को व्यवस्थित देखना है तो हमें हमेशा कानून का पालन करना चाहिए। सामाजिक शिक्षा के द्वारा बालक में परिवार तथा समाज के प्रति संवेदनशीलता विकसित की जानी चाहिए। इसके लिए आधुनिक विद्यालयों को बच्चों को बचपन से ही न्याय एवं कानून की शिक्षा देनी चाहिए।
बच्चों की शिक्षा सर्वाधिक महान सेवा है :- आध्यात्मिक शिक्षा के अन्तर्गत प्रत्येक बालक को एक ही परमपिता परमात्मा की ओर से युग-युग में अपने संदेशवाहकों के द्वारा भेजी गई पवित्र ग्रन्थों- गीता, त्रिपटक, बाईबिल, कुरान शरीफ, गुरू ग्रन्थ साहिब, किताबे अकदस में संकलित परमात्मा की शिक्षाओं का ज्ञान कराना चाहिए तथा परमात्मा की शिक्षाओं पर चलने के लिए प्रेरित करना चाहिए। बच्चों को बताना चाहिए कि सभी संदेशवाहक राम, कृष्ण, बुद्ध, ईशु, मोहम्मद, मोजज, अब्राहम, जोरस्टर, महावीर, नानक, बहाउल्लाह एक ही परमात्मा की ओर से युग-युग में आये हैं। परमात्मा का ज्ञान किसी धर्म विशेष के अनुयायियों के लिए नहीं है बल्कि सारी मानव जाति के लिए है। इस प्रकार सर्वशक्तिमान परमेश्वर को अर्पित मनुष्य की ओर से की जाने वाली समस्त सम्भव सेवाओं में से सर्वाधिक महान सेवा है- (अ) बच्चों की शिक्षा, (ब) उनके चरित्र का निर्माण तथा (स) उनके हृदय में परमात्मा के प्रति अटूट प्रेम उत्पन्न करना - डा0 जगदीश गाँधी|