पूरी सृष्टि अपनी है परायी नहीं ...- डा0 जगदीश गांधी
संसार के सभी बच्चों को विश्व नागरिक बनने की शिक्षा दी जानी ...
सृष्टि पूरी की पूरी अपनी है परायी नहीं ...
बाल्यावस्था से विचार डालना चाहिए कि वे ऊँचा सोचें और महान बनें....
बच्चों का बाल्यावस्था से ही संकल्प हो कि मैं एक दिन दुनियाँ एक करूँगा धरती स्वर्ग बनाऊँगा...
विश्व शान्ति का सपना सच करके दिखलाऊँगा...
अच्छे विचार ग्रहण करने के लिए बाल्यावस्था सबसे महत्वपूर्ण है :- आज की उद्देश्यविहीन शिक्षा ने मानव जीवन को उद्देश्यविहीन कर दिया है। उद्देश्यविहीन शिक्षा ने परमात्मा से बालक का सम्बन्ध विच्छेद कर दिया है। बालक का जैसा दृष्टिकोण होगा वैसा ही उसका जीवन बन जायेगा। आज की शिक्षा बालक को केवल भौतिक विषयों की शिक्षा देती है। जिसके कारण व्यक्ति केवल एक भौतिक प्राणी बनकर ही रह गया है जबकि मनुष्य एक भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक प्राणी है। इसलिए बालक को केवल भौतिक शिक्षा ही नहीं वरन् भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक गुणों से युक्त संतुलित शिक्षा देने की आवश्यकता है। बचपन में जो विचार बालक के अवचेतन मन में पड़ जाते हैं, वे विचार उसके भावी जीवन का हिस्सा बन जाते हैं। अच्छे गुणों को अपनाने के लिए बाल्यावस्था सबसे महत्वपूर्ण अवस्था होती है। इसलिए आज के युग की आवश्यकता के अनुरूप बच्चों को शिक्षा देकर उनके दृष्टिकोण को विश्वव्यापी बनाना चाहिए।
" alt="" />शिक्षा के द्वारा बच्चों को आज विश्व एकता का विचार देने की आवश्यकता है :- हमारे ऋषि-मुनियों ने कल्पना की थी कि उदार चरित्र वालों के लिए यह वसुधा कुटुम्ब के समान है। विश्व एकता की शिक्षा इस युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है। शिक्षा के द्वारा बच्चों को आज विश्व एकता का विचार देने की आवश्यकता है। बच्चों का बाल्यावस्था से ही संकल्प हो कि मैं एक दिन दुनियाँ एक करूँगा धरती स्वर्ग बनाऊँगा, विश्व शान्ति का सपना सच करके दिखलाऊँगा। बालक में ऐसे गुण विकसित करने चाहिए जिससे कि वह सारी मानव जाति का सेवक बन सके। संसार के सभी बच्चों को विश्व नागरिक बनने की शिक्षा दी जानी चाहिए। हमें प्रत्येक बालक को विश्व कल्याण के कार्य के लिए तैयार करना चाहिए। हमें प्रत्येक बालक में बचपन से ही ऐसे विचार डालना चाहिए कि वे ऊँचा सोचें और महान बनें।
सभी धर्मो की शिक्षा है मानवमात्र से बिना किसी भेदभाव के प्रेम करना है :-परमात्मा का दिव्य ज्ञान एक ही दिव्य लोक से आया है। हमारी पहचान हमारा शरीर नहीं वरन् हमारी आत्मा है। हर व्यक्ति के दो पिता होते हैं - एक भौतिक शरीर का पिता है तथा दूसरा परमपिता परमात्मा हमारी आत्मा का पिता है। भगवान श्रीकृष्ण से उनके शिष्य अर्जुन ने पूछा कि आपका धर्म क्या है? भगवान श्रीकृष्ण ने अपने शिष्य अर्जुन को बताया कि मैं सारी सृष्टि का सृजनहार हूँ। इसलिए मैं सारी सृष्टि से एवं सृष्टि के सभी प्राणी मात्र से बिना किसी भेदभाव के प्रेम करता हूँ। इस प्रकार मेरा धर्म अर्थात कर्तव्य सारी सृष्टि तथा इसमें रहने वाली मानव जाति की भलाई करना है। इसके बाद अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि भगवन् मेरा धर्म क्या है? भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि तुम मेरी आत्मा के पुत्र हो। इसलिए मेरा जो धर्म अर्थात कर्तव्य है वही तुम्हारा धर्म अर्थात कर्तव्य है। अतः सारी मानव जाति की भलाई करना ही तुम्हारा भी धर्म अर्थात् कर्तव्य है। भगवान श्रीकृष्ण ने बताया कि इस प्रकार तेरा और मेरा दोनों का धर्म अर्थात् कर्तव्य सारी सृष्टि की भलाई करना ही है। किन्तु अज्ञानतावश हम यह कहते हैं कि मैं हिन्दू हूँ, मैं मुसलमान हूँ, मैं सिक्ख हूँ, मैं ईसाई हूँ। धर्म को अलग-अलग समझने के कारण ही हम एक-दूसरे से भेदभाव करते हैं, जबकि सभी धर्मों की शिक्षा मानव मात्र से प्रेम करना है। इस ग्लोब को परमात्मा ने बनाया है। इसलिए यह सारी धरती अपनी है तथा इसमें रहने वाली समस्त मानव जाति भी एक परिवार है। यह सृष्टि पूरी की पूरी अपनी है परायी नहीं है।
बालक को पवित्र ग्रन्थों के सम्पूर्ण दिव्य ज्ञान से जोड़ने की आवश्यकता है :-परमात्मा सबसे बड़ा हितैषी है जब वह हमारे से अलग हो जाता है तो मनुष्य बुराइयों से घिर जाता है। आज समाज बुराइयों से घिरता जा रहा है। जिसका एकमात्र कारण बचपन में मिली उद्देश्यहीन शिक्षा है। जिस प्रकार बल्व पॉवर हाउस से जुड़कर प्रकाशित हो जाता है उसी प्रकार मनुष्य परमात्मा से जुड़कर प्रकाशित हो जाता है। जब-जब लोग परमात्मा की शिक्षाओं को भूल जाते हैं तब-तब वे दुखों और कष्टों से घिर जाते हैं। लोक कल्याण के लिए परमात्मा स्वयं मानव शरीर में युग-युग में राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, ईशु, मोहम्मद, नानक, बहाउल्लाह के रूप में जन्म लेता है। मानव जाति को उसके धर्म अर्थात कर्तव्यों का बोध कराता है। आज की शिक्षा का उद्देश्य प्रत्येक बालक को सभी पवित्र ग्रन्थों - गीता, त्रिपटक, बाईबिल, कुरान, गुरू ग्रन्थ साहिब, किताबे अकदस, किताबे अजावेस्ता के सम्पूर्ण दिव्य ज्ञान से जोड़ने की है।