मेरे संस्मरणों का संकलन है, आत्मकथा नहीं 'चरैवेति! चरैवेति!': -राज्यपाल
राज्यपाल की पुस्तक 'चरैवेति! चरैवेति!' के सिंधी भाषा में अनुवाद 'हलंदा! हलो!' का विमोचन राज्यपाल एवं मुख्यमंत्री की उपस्थिति में सम्पन्न...
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के राज्यपाल की पुस्तक 'चरैवेति! चरैवेति!' के सिंधी भाषा में अनुवाद 'हलंदा! हलो!' का विमोचन आलमबाग स्थित शिव शांति संत आसूदाराम आश्रम में किया गया। इस अवसर पर राज्यपाल राम नाईक जी एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी उपस्थित थे।
कार्यक्रम में लोगों को सम्बोधित करते हुए राज्यपाल ने कहा कि यह पुस्तक मेरे संस्मरणों का संकलन है, आत्मकथा नहीं। 'चरैवेति! चरैवेति!' का अर्थ है 'चलते रहो, चलते रहो' ।
इस पुस्तक का लेखन कैसे हुआ इस बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि मराठी भाषा के एक प्रतिष्ठित दैनिक समाचार पत्र के सम्पादक ने मुझे अपने जीवन से जुड़े अनुभव लिखने हेतु प्रेरित किया। मैंने सम्पादक जी से कहा कि मैं कॉमर्स का छात्र रहा हूं तथा लेखन कला की मुझे अधिक जानकारी भी नहीं है। सम्पादक महोदय ने आग्रह कर बताया कि अनेक नेता अपने संस्मरण लिख रहे हैं। वरिष्ठ राजनेता होने के कारण यदि आप भी अपने सस्मरण लिखेंगे तो पाठकों को अच्छा लगेगा।
व्यक्ति जब अपने परिश्रम और पुरुषार्थ से मार्ग बनाता है, तो यश और कीर्ति उसके पीछे-पीछे चलती है...
मैंने थोड़ा सोचा फिर लिखने के लिए हां कर दी। मेरे लेख समाचार पत्र में प्रकाशित होने लगे। एक वर्ष तक 27 संस्मरणों की श्रृंखला प्रकाशित होने के पश्चात् मराठी भाषा में इसे पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया। इस अवसर पर अपने सम्बोधन में मुख्यमत्री योगी आदित्यनाथ जी ने कहा कि जीवन के संस्मरण लोगों को आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं। उन्होंने कहा कि यह पुस्तक कर्म करने की प्रेरणा देती है। सार्वजनिक जीवन में कार्य करने वाले सभी कार्यकर्ताओं के लिए यह पुस्तक अनुकरणीय है।
हमारे राष्ट्र गान में सिंध शब्द है, हमारे यहां सिंधु नदी भी बहती है। भारत की संस्कृति का मूल सिंध है, सिंध से ही हिंद बना है, सही मायने में कहा जाए तो सिंधी नहीं तो हिंदी नहीं है। सिंधी समाज की सराहना करते हुए मुख्यमंत्री जी ने कहा कि जब भी व्यक्ति अपने परिश्रम और पुरुषार्थ से मार्ग बनाता है यश और कीर्ति उसके पीछे-पीछे चलती है। सिंधी समाज ने तमाम कष्टों को सहते हुए अपनी मेहनत से जो सम्मान प्राप्त किया है वह अभिनंदनीय है। राज्यपाल के निर्देशन में ही लखनऊ विश्वविद्यालय में छत्रपति शिवाजी महाराज के साम्राज्योत्सव एवं 'हिन्दवी दिवस' समारोह आयोजित किया गया। विश्वविद्यालय में छत्रपति शिवाजी महाराज की अश्वारोही प्रतिमा भारत की ललित कला अकादमी के अध्यक्ष श्री उत्तम पचासने जी ने बनाई है। इसकी भी प्रेरणा राज्यपाल जी ने दी थी।
यह पुस्तक कर्म करने की प्रेरणा देती है : मुख्यमंत्री
उत्तर प्रदेश का नाम 24 जनवरी 1950 को पड़ा था, लेकिन उत्तर प्रदेश कभी अपना स्थापना दिवस नहीं मनाता था। राज्यपाल के मार्गदर्शन में पिछले दो वर्षों से उत्तर प्रदेश दिवस मनाया जा रहा है।
इस आयोजन के अवसर पर राज्य सरकार हर बार एक नए कार्यक्रम की घोषणा करती है। पिछले वर्ष हमने 'एक जनपद, एक उत्पाद’ योजना का शुभारम्भ किया था। इस वर्ष राज्य सरकार ने 'विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना की शुरुआत की है। सिंधी समाज ने तमाम कष्टों को सहते हुए अपनी मेहनत से जो सम्मान प्राप्त किया है वह अभिनंदनीय है..
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि जीवन सकारात्मकता का नाम है, सकारात्मक सोच से व्यक्ति का जीवन विकास के पथ पर अग्रसर होता है। नकारात्मक सोच जीवन का पतन करती है। कार्यक्रम में पूर्व मंत्री डॉ0 अम्मार रिजवी ने भी अपने विचार व्यक्त किए। ज्ञातव्य है कि पुस्तक 'चरैवेति! चरैवेति!' का सिंधी भाषा में अनुवाद श्री सुखराम दास ने किया है। अब तक यह पुस्तक 7 भाषाओं में अनुदित हो चुकी है। आने वाले समय में 10 भाषाओं में यह पुस्तक उपलब्ध रहेगी। कार्यक्रम की शुरुआत राज्यपाल जी एवं मुख्यमंत्री जी ने दीप प्रज्ज्वलन कर की। इसके बाद वहां उपस्थित लोगों ने दो मिनट का मौन धारण पुलवामा के शहीद जवानों को श्रद्धांजलि दी।
इस अवसर पर राज्य सरकार के मंत्री रीता बहुगुणा जोशी, आशुतोष टण्डन, ब्रजेश पाठक, स्वाति सिंह तथा मोहसिन रजा, सिंधी कांउसिल ऑफ इण्डिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहन दास लधानी सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।